Wednesday, May 12, 2010

जाने ये कैसी हवा चली है ...

जाने ये कैसी हवा चली है
मेरी नज्में कहाँ बह चली हैं

अक्सर लबों पे आते-आते
लफ्ज़ खो देते थे अपने माने
आज क्या बात है फिर
क्यूँ ये फिजा नयी नयी है

इक अजनबी माहताब ने
दिल पे दी है दस्तक
ये झोंका जो है साथ में लाया
पर वो खुशबू नयी नहीं है

आज भर आया है किस बात पे दिल
कुछ तो बयाँ करो हमसे
बहुत फक्र से कहते थे 'अर्श'
अब तो कोई कमी नहीं है
-'अर्श'

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