के आज कहीं तो मुलाकात हो तुमसे
मिली तुम, हुआ सलाम,
तुमने पूछा क्या है हाल,
कहा हमने
पता नही इतना बेकरार क्यों हूँ,
समझ नही आता के इतना बेकार क्यों हूँ
आँखें बंद हों तो तुम ही नज़र आते हो,
खोलते ही पता नहीं कहाँ खो जाते हो
घर कुछ इस तरह से कर लिए है आंखों में तुमने,
के दो मोती भी न छोडे हैं बहाने को
बहुत रोका बहुत टोका अब दिल नही मानता है,
प्यार है तुमसे बस यही जानता है
मिल जाओ तुम यह नही है चाहत,
परवानो को जलकर ही मिलती है राहत
कहते हैं वो फ़िर क्यों जिंदिगी बर्बाद करते हो,
धोका है मोहब्बत क्यों ऐतबार करते हो
वायज ही पूछते हैं मोहब्बत का सबब,
जैसे काफिर ही पूछते हैं बंदगी का सबब
जी लूँगा मैं दिल में लिए तेरी उल्फत,
तू खुश रहे मेरे महबूब नहीं कुछ और चाहत
फ़िर आँखें खुली फ़िर तुम गायब,
देखा था एक और ख्वाब शायद
पता नहीं यह कभी कह पाऊँगा तुमसे
लेकिन,
निकला हूँ आज फ़िर यही ख्वाब लेके...
-अर्श
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