रहती है मेरे साथ मुझे ही तकती है
है एक मेरा दीवाना दिल,
जिसको है हर वक़्त उम्मीद विसाल-ऐ-यार की
और एक तू है,
जो मुझे सदा नाउम्मीद करती है
इतना भी सितम कम हो तो ये जान भी हाज़िर है
क्यों ख्वाबों में आ मेरी नींदें तबाह करती है
ऐ खुदा कहते हैं लोग
तुझे भी पा लूँ गर इतनी मोहब्बत तुझसे हो
मुझे तो उस दिल में ही तेरी खुदाई दिखती है
वोही बन्दिगी है मेरी उसे पाके ही तुझे पाऊंगा
इखलास का इम्तिहान है मेरे
देखें वो कब तलक इनकार करती है
आज सोचा भुला दूँगा तुझको
जो हैं निशाँ मिटा दूँगा सबको
नही था मालूम
हर धड़कन हर साँस में तू ही बस्ती है
तेरा नाम जो बह रहा है इस खून-ऐ-जिगर में मिलके
कैसे मिटाऊँ उसको
क्या करुँ कैसे भुलाऊँ तुझको
न है कोई उम्मीद न ही कोई तरकीब दिखती है
एक कतरा तक भी तेरी याद दिला जाता है
चाँद भी आए तो यही ख़याल आता है
ऐ चाँद, तुझसे तो मेरी महबूबा अच्छी है
शायर नही कोई मैं और न शायरी है मेरा काम
कलम हो हाथ में और गर सामने कागज़
फ़िर मेरी खता नही होती कोई
काम बाकी,
आंखों में बसी एक तसवीर करती है
इसलिए,
तुझसे तेरी तसवीर अच्छी है
-अर्श
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