एक बार हमारे एक खास दोस्त, खरे साहब ने पूछ लिया कि और अर्श साहब, कोई नही inspiration? उसके जबाब में चंद लफ्ज़ कहे थे, उम्मीद है कि आपको पसंद आयेंगे -
ग़म और नहीं एक ही काफ़ी है,
तेरी यादों के साए मेरी तन्हाई में साथी हैं
यूँ तो हैं लाख शम्माएं इस परवाने की ताक में,
दिल को जलाने के लिए एक चिंगारी ही काफ़ी है
ग़म और नहीं एक ही काफ़ी है,
तेरी यादों के साए मेरी तन्हाई में साथी हैं
यूँ तो हैं लाख शम्माएं इस परवाने की ताक में,
दिल को जलाने के लिए एक चिंगारी ही काफ़ी है
तेरी खुशी की खातिर तुझसे दूर चले आए,
मेरी मोहब्बत का भी तुझे इल्म न होने पाए
एक हस्ता हुआ चेहरा जो इन आंखों में है,
मेरी खुशी के लिए यह चाँद ही काफ़ी है
मेरी मोहब्बत का भी तुझे इल्म न होने पाए
एक हस्ता हुआ चेहरा जो इन आंखों में है,
मेरी खुशी के लिए यह चाँद ही काफ़ी है
ये दिल एक नाज़ुक मुकाम पे जा पहुँचा है,
तेरी यादों से दामन बचा हँसता रहता है
इस बेचारे को इतना भी नहीं मालूम,
के रुलाने के लिए एक नाम ही काफ़ी है
तेरी यादों से दामन बचा हँसता रहता है
इस बेचारे को इतना भी नहीं मालूम,
के रुलाने के लिए एक नाम ही काफ़ी है
ये ज़िन्दगी एक दिन तिनकों में बिखर जायेगी,
कश्ती भी कभी भंवर में खो जायेगी
तूफानों मेरी तबाही की आस छोड़ दो,
मुझे डुबाने के लिए एक मस्त झोंका ही काफ़ी है
कश्ती भी कभी भंवर में खो जायेगी
तूफानों मेरी तबाही की आस छोड़ दो,
मुझे डुबाने के लिए एक मस्त झोंका ही काफ़ी है
ग़म और नहीं, एक ही काफ़ी है ...
-अर्श
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