Saturday, September 6, 2008

दो दिन तुम्हारे इंतज़ार में ये फूल ...

एक दफ़ा हुआ यूँ की हमारे एक अज़ीज़ दोस्त की दिलरुबा उन्हें दो दिन के बाद मिलने आने वाली थी, तो उन्होंने उनके इस्तकबाल के ढेरों इन्तेजामों में कुछ फूल भी लायेये देख एक मोहतरमा बोल पड़ी की दो दिन बाद फूलों की वो हालत होगी की उनकी दिलरुबा उनके मुंह पे फेंक कर मारेगीतो जबाब हमने अपने दोस्त की तरफ़ से कुछ इस तरह दिया -

दो दिन तुम्हारे इंतज़ार में
ये फूल मुरझा जायेंगे
बादल बरसेंगे जरूर
पर इनकी खुशबू न बचा पाएंगे
ऐसा कहते हैं लोग
हँसते हैं हमें दीवाना कहते हैं लोग
हम फ़िर भी इन्हें संभाल रखेंगे
तेरे इंतज़ार में इनसे बातें चार करेंगे

देख कर इनको
तुम भी मुझे दीवाना ही कहोगी
लेकिन मेरे दिल की तरह
इनको भी सीने से लगा ही लोगी
मेरी सूनी दुनिया तुम
फ़िर अपनी मुस्कान से सजा दोगी
ये फूल फिर से जी उठेंगे
ये तो चंद ज़र्रे हैं
ये क्या चमन भी महक उठेंगे
अब आना तो न दूर जाना
तुमसे दूर अब हम न रह सकेंगे
-अर्श

2 comments:

Abhishek Ojha said...

somehow it reminded of this:

मज़ारे कैस पर जब रुह-ए-लैला एक दिन आई. तो अरमानों के मुरझाए हुए कुछ फूल भी लाई.
लगी जब फूल रखने तो कब्र से आवाज़ ये आई. चढ़ाना फूल जानेमन मगर आहिस्ता-आहिस्ता.

Unknown said...

good one ... Mini also liked it very much