बहार-ऐ-वस्ल आती-जाती है
मुझे हमदर्दी न दो दोस्तों,
ये रंज-ओ-ग़म तो मेरे साथी हैं
शहर में आकर भी तेरे,
फिराक-ए-दीदा यह आँखें रही
तेरी महफिल में पैमाने लाखों थे,
बुझा सका न प्यास-ऐ-जिगर कोई भी
आंखों से पिला दी होती थोडी तो यार मेरे,
सुना है, तू तो बहुत बड़ा साकी है
वो नही तो ऐसा भी नही,
कभी पैमाना नही छुएंगे हम,
मोहब्बत जो है फितरत अपनी,
उससे दूर, कब तलक रहेंगे हम,
पर क्या करें यादों का, किया सौ बार दफ्न,
फिर भी हर एक साँस के साथ उभर आती हैं
दर्द-ऐ-दिल देकर पूछते हैं वो,
तुम्हारी नज्मों में बसा ग़म किसका है?
कत्ल कर करते हैं सवाल वो ,
खून-ऐ-जिगर में भीगा खंज़र किसका है?
आबाद रहे सदा आशियाँ उनका,
हमारी आबादी को उनकी एक मुस्कान ही काफी है
अभी जिंदा हूँ तो जी लेने दे,
ऐ दिल मत रोक मुझे, पी लेने दे
जो हैं दफ्न इस दिल में अरमान, ख्वाइश,
खुले में उनको भी तो कुछ साँस लेने दे
लम्हें कम हैं, डर मत, इन्हे बड़ा कर ऐ दिल,
साँसे चार ही सही,जिंदगी मगर अब भी बाकी हैं
कभी पैमाना नही छुएंगे हम,
मोहब्बत जो है फितरत अपनी,
उससे दूर, कब तलक रहेंगे हम,
पर क्या करें यादों का, किया सौ बार दफ्न,
फिर भी हर एक साँस के साथ उभर आती हैं
दर्द-ऐ-दिल देकर पूछते हैं वो,
तुम्हारी नज्मों में बसा ग़म किसका है?
कत्ल कर करते हैं सवाल वो ,
खून-ऐ-जिगर में भीगा खंज़र किसका है?
आबाद रहे सदा आशियाँ उनका,
हमारी आबादी को उनकी एक मुस्कान ही काफी है
अभी जिंदा हूँ तो जी लेने दे,
ऐ दिल मत रोक मुझे, पी लेने दे
जो हैं दफ्न इस दिल में अरमान, ख्वाइश,
खुले में उनको भी तो कुछ साँस लेने दे
लम्हें कम हैं, डर मत, इन्हे बड़ा कर ऐ दिल,
साँसे चार ही सही,जिंदगी मगर अब भी बाकी हैं
-अर्श
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