एक बार एक महफिल में तन्हाई पे ज़िक्र चल रहा था, हम बहुत देर सुनके आख़िर कार परेशान हो गए, और तभी एक ख़याल दिमाग में आया तो एक नज़्म कह डाली। गौर फरमाइए -
हर पल तेरी यादों के साये हैं,
हर पल इस दिल को तेरी याद आई है
कुछ अजनबी शक्सियतों के साथ
एक दुनिया हमने बसाई है
और लोग कहते हैं तन्हाई है ... !!!
याद है वो दिन जब जुदा हुए थे हम,
आंखें थी नम, दरिया बना था दामन
मोहब्बत ही है की तेरी खुशी में
होटों पे अपने मुस्कराहट हमने सजाई है
और लोग कहते हैं तन्हाई है ... !!!
आँखें बंद हों तो तुम्हें पाते हैं
तुझसे बातें करते घंटो बीत जाते हैं
जिंदगी ऐसे ही बिता दे हम तो लेकिन,
हर चेहरे में झलक तुम्हारी नज़र आई है
और लोग कहते हैं तन्हाई है ... !!!
दर-ए-यार पे टिकी रहती हैं आँखें
यकीं हैं, इस और फ़िर मुडेंगी तेरी राहें
एक आहट हो तो दिल खुश हो उठता है
कोई भी हो लगता है जैसे के तू आयी है
और लोग कहते हैं तन्हाई है ... !!!
अब भी उन चांदनी कोमल रातों में
दिल को तुम्हारे साथ टहेलता पाते हैं
अब भी उन मदमस्त बरसातों में
किसी रेशमी आँचल को भीगता पाते हैं
जहाँ बिताये थे हमने वो हसीन लम्हे
वहीँ बैठ हमने फ़िर एक नज्म गायी है
और लोग कहते हैं तन्हाई है ... !!!
-अर्श