Wednesday, May 12, 2010

जाने ये कैसी हवा चली है ...

जाने ये कैसी हवा चली है
मेरी नज्में कहाँ बह चली हैं

अक्सर लबों पे आते-आते
लफ्ज़ खो देते थे अपने माने
आज क्या बात है फिर
क्यूँ ये फिजा नयी नयी है

इक अजनबी माहताब ने
दिल पे दी है दस्तक
ये झोंका जो है साथ में लाया
पर वो खुशबू नयी नहीं है

आज भर आया है किस बात पे दिल
कुछ तो बयाँ करो हमसे
बहुत फक्र से कहते थे 'अर्श'
अब तो कोई कमी नहीं है
-'अर्श'

Monday, May 10, 2010

याद आता है ...

याद आता है
तेरा वो नज़रें मिलाके
नजरें चुरा जाना
फिर तेरी नज़रों में
समंदर का उमड़ आना
और उनका धीरे से
सहमे लफ़्ज़ों में कहना
मुझे इस तरह से
न देखो मेरी जान !!!
इस तरह बेबस
न करो मुझको
तेरे इश्क के तूफ़ान में
मेरे दिल कि कश्ती
जाने कहाँ बही जाती है
फिर मेरी पलकें बेबस
इक लम्हा बंद हो जाती हैं
मानो कह रही हो
के बहना ही है अब
तो चल साथ बहें
मैं तेरी नज़रों में
और तू मेरी नज़रों में बहे
और फिर तेरे लबों पे
जो इक कली सी खिलती है
उफ़ ... वो मंज़र
याद आता है ...
- 'अर्श'