Tuesday, April 2, 2019

एहसास

कल रात ख़्वाबों की बारिश हुयी लगता है
या फिर कोई सिरहाने रख कर छोड़ गया
ये मुस्कान कैसी
जायका अभी तक उतरा नहीं होटों से
तेरे रंग का
दोपहर हुयी अजब सी सर्द सी
मानो तू कह रही हो ... सो जाओ
आँखें बेबस बंद हुए जाती हैं
कह रही हैं की फ्रेम कर लो
ये ख्याल ...
के जो तेरी मुस्कान से मिल गयी मेरी
न जाने क्यों सब मुकम्मल लगता है 

Saturday, February 22, 2014

मेरा वो सबसे खूबसूरत लम्हा ...

तुम्हें पता नहीं होगा शायद
मेरा वो सबसे खूबसूरत लम्हा

जब कीबोर्ड की  गिट-गिट
और कॉफ़ी की  सिप -सिप
के बीच भी
 मैं चुन कर तेरे सीने की धड़कन
की धक्-धक् सी आवाज़
अपने दिल में उतार लेता हूँ
और भर लेता हूँ तेरी ठंडी गहरी सांसें
अपने जेहन में
फिर धीरे से उठती उस हंसी के सॉना में
पिघल जाता हूँ

बस उस पल गर तू गले से न लगा ले
तो दिल  मचलता जाने कहाँ हो
Resonance, ये शब्द सुना था
तेरे साथ  मतलब भी जान लेता हूँ

 सच ही है तेरे साथ कभी बोर नहीं होता
उन खामोशियों में भी तुझसे बात करने का रास्ता
 ढून्ढ ही लेता हूँ

 इसलिए  सोचा क़े पिन कर लूं
मेरा वो सबसे खूबसूरत लम्हा 

Friday, February 21, 2014

बस प्यार हो जाएगा खुद से …

आईने में तो अक्स देखती ही होगी
कभी मेरी नज़र में झाँक कर भी
खुद को देखो …
जैसे मुझे हर बार प्यार हो जाता है तुझसे
बस प्यार हो जाएगा खुद से …

लैपटॉप पे कोई गीत सुनते सुनते थाप तो देती ही होगी
कभी  मेरे हाथ पे अपने हाथ की
आवाज़ को सुनके देखो ...
जैसे मुझे हर बार प्यार हो जाता है तुझसे
बस प्यार हो जाएगा खुद से …

जैसे मैं तेरे सिगरेट के धुएं की धुंध में खोके
तेरे अंदर उतर जाना चाहता हूँ 
कभी मेरी धड़कन पे चलके देखो 
जैसे मुझे हर बार प्यार हो जाता है तुझसे
बस प्यार हो जाएगा खुद से … 

अक्सर सिमट जाती होगी  
दिल्ली की सर्दी में ठिठुर कर
कभी 'अर्श' के दामन का सार देखो 
जैसे मुझे हर बार प्यार हो जाता है तुझसे 
बस प्यार हो जायेगा "मुझ" से :)

Saturday, October 19, 2013

Random

ज़िक्र छेड़ा किसी ने महफ़िल में,
तो याद आया, के कभी इस शहर  में
एक शायर भी रहा करता था

Random

आपकी छत पे जब खाने के बाद कॉफ़ी लेके बैठेंगे, 
आपका हाथ थाम कर, 
आपकी आँखों में एक नज़्म चुपके से कह देंगे। 

Saturday, November 24, 2012

वो बात ...

महज़ मुस्कुराने से कहाँ टल सकेगी वो खामोश सी बात,
जो तेरे दिल से निकली और तेरे चेहरे के सुर्ख रोगन में रंग गयी
और
तेरी नज़रों की नमी से मेरे दिल में एक तूफ़ान ले आई है 

Friday, April 27, 2012

शाम को, जो आप आयेंगे छत पे ...

शाम को, जो आप आयेंगे छत पे,
नज़्म खुद-बा-खुद चली आएगी

कभी झील-सी उन आँखों
की गहराईयों में उतर कर
करेगी गुफ्तगू आपकी खामोशियों के साथ
या फिर आपके उड़ते हुए साड़ी के पल्लू में बने फूलों
में महक जाएगी

कभी माजा बनेगी, पेंच लड़ाती  हैं जो ये खूबसूरत आँखें, उनकी
या तो फिर कभी यूँ ही शाम के सुर्ख रोगन में
घुल जाएगी

मैं अक्सर समुन्दर में ढलते सूरज के कान में
चुपके से कह देता हूँ कुछ बातें, दिल की
कभी तो इन लहरों पे चलके उफक के उस पार
आप तक पहुँच जाएँगी