Saturday, November 24, 2012

वो बात ...

महज़ मुस्कुराने से कहाँ टल सकेगी वो खामोश सी बात,
जो तेरे दिल से निकली और तेरे चेहरे के सुर्ख रोगन में रंग गयी
और
तेरी नज़रों की नमी से मेरे दिल में एक तूफ़ान ले आई है 

Friday, April 27, 2012

शाम को, जो आप आयेंगे छत पे ...

शाम को, जो आप आयेंगे छत पे,
नज़्म खुद-बा-खुद चली आएगी

कभी झील-सी उन आँखों
की गहराईयों में उतर कर
करेगी गुफ्तगू आपकी खामोशियों के साथ
या फिर आपके उड़ते हुए साड़ी के पल्लू में बने फूलों
में महक जाएगी

कभी माजा बनेगी, पेंच लड़ाती  हैं जो ये खूबसूरत आँखें, उनकी
या तो फिर कभी यूँ ही शाम के सुर्ख रोगन में
घुल जाएगी

मैं अक्सर समुन्दर में ढलते सूरज के कान में
चुपके से कह देता हूँ कुछ बातें, दिल की
कभी तो इन लहरों पे चलके उफक के उस पार
आप तक पहुँच जाएँगी