Saturday, November 24, 2012

वो बात ...

महज़ मुस्कुराने से कहाँ टल सकेगी वो खामोश सी बात,
जो तेरे दिल से निकली और तेरे चेहरे के सुर्ख रोगन में रंग गयी
और
तेरी नज़रों की नमी से मेरे दिल में एक तूफ़ान ले आई है 

Friday, April 27, 2012

शाम को, जो आप आयेंगे छत पे ...

शाम को, जो आप आयेंगे छत पे,
नज़्म खुद-बा-खुद चली आएगी

कभी झील-सी उन आँखों
की गहराईयों में उतर कर
करेगी गुफ्तगू आपकी खामोशियों के साथ
या फिर आपके उड़ते हुए साड़ी के पल्लू में बने फूलों
में महक जाएगी

कभी माजा बनेगी, पेंच लड़ाती  हैं जो ये खूबसूरत आँखें, उनकी
या तो फिर कभी यूँ ही शाम के सुर्ख रोगन में
घुल जाएगी

मैं अक्सर समुन्दर में ढलते सूरज के कान में
चुपके से कह देता हूँ कुछ बातें, दिल की
कभी तो इन लहरों पे चलके उफक के उस पार
आप तक पहुँच जाएँगी

Tuesday, May 17, 2011

कहाँ छोड़ आये हो वो साथी ?

कल चलते चलते एहसास हुआ,
के कुछ जानी पहचानी सी हैं ये राहें.
हवायें कुछ ऐसे छू गयी,
मानो बाहों में भर लिया हो किसी ने,
इक महक मन को बहकाती रही.
चाँद की तरफ देखा तो यूँ लगा,
कोई देख रहा था मुझको,
हम भी नजर मिला चलते रहे.
कुछ कही-अनकही,
कुछ जानी-अनजानी सी,
सदायें भी आती रही.
इक आहट किसी के मंद क़दमों की,
हमसफ़र थी मेरी.
कभी लगा किसी ने हाथ थाम के कहा,
चलो न लम्हा दो लम्हा यहीं बैठ जाएँ.
वो सड़क के किनारे वाले खम्बे
पे टिक कर जो ऊपर की और
उसकी नज़रों में देखा,
तो रौशनी धीमी कर वो बोला,
बड़े दिन बाद नजर आये हो.
रोज सुनता था,
जो छोड़ गए थे,
इन फिजाओं में बातें.
बहुत तेज चलने लग गए हो शायद,
कहाँ छोड़ आये हो वो साथी ?

Wednesday, May 12, 2010

जाने ये कैसी हवा चली है ...

जाने ये कैसी हवा चली है
मेरी नज्में कहाँ बह चली हैं

अक्सर लबों पे आते-आते
लफ्ज़ खो देते थे अपने माने
आज क्या बात है फिर
क्यूँ ये फिजा नयी नयी है

इक अजनबी माहताब ने
दिल पे दी है दस्तक
ये झोंका जो है साथ में लाया
पर वो खुशबू नयी नहीं है

आज भर आया है किस बात पे दिल
कुछ तो बयाँ करो हमसे
बहुत फक्र से कहते थे 'अर्श'
अब तो कोई कमी नहीं है
-'अर्श'

Monday, May 10, 2010

याद आता है ...

याद आता है
तेरा वो नज़रें मिलाके
नजरें चुरा जाना
फिर तेरी नज़रों में
समंदर का उमड़ आना
और उनका धीरे से
सहमे लफ़्ज़ों में कहना
मुझे इस तरह से
न देखो मेरी जान !!!
इस तरह बेबस
न करो मुझको
तेरे इश्क के तूफ़ान में
मेरे दिल कि कश्ती
जाने कहाँ बही जाती है
फिर मेरी पलकें बेबस
इक लम्हा बंद हो जाती हैं
मानो कह रही हो
के बहना ही है अब
तो चल साथ बहें
मैं तेरी नज़रों में
और तू मेरी नज़रों में बहे
और फिर तेरे लबों पे
जो इक कली सी खिलती है
उफ़ ... वो मंज़र
याद आता है ...
- 'अर्श'

Sunday, September 7, 2008

मिसालों में शिद्दत बयां नहीं कर सकता

मिसालों में शिद्दत बयां नहीं कर सकता
कम प्यार तुझे मैं कर नही सकता
सागर भी पशेमां है कि डूबा बच जाता है
इश्क में डूबे को कोई बचा नही सकता
नापूं तो आख़िर किस्से ऊँचाई तेरी
'अर्श' से ऊँचा तो कुछ बता नही सकता
-अर्श

और लोग कहते हैं तन्हाई है ... !!!

एक बार एक महफिल में तन्हाई पे ज़िक्र चल रहा था, हम बहुत देर सुनके आख़िर कार परेशान हो गए, और तभी एक ख़याल दिमाग में आया तो एक नज़्म कह डाली। गौर फरमाइए -

हर पल तेरी यादों के साये हैं,
हर पल इस दिल को तेरी याद आई है
कुछ अजनबी शक्सियतों के साथ
एक दुनिया हमने बसाई है
और लोग कहते हैं तन्हाई है ... !!!

याद है वो दिन जब जुदा हुए थे हम,
आंखें थी नम, दरिया बना था दामन
मोहब्बत ही है की तेरी खुशी में
होटों पे अपने मुस्कराहट हमने सजाई है
और लोग कहते हैं तन्हाई है ... !!!

आँखें बंद हों तो तुम्हें पाते हैं
तुझसे बातें करते घंटो बीत जाते हैं
जिंदगी ऐसे ही बिता दे हम तो लेकिन,
हर चेहरे में झलक तुम्हारी नज़र आई है
और लोग कहते हैं तन्हाई है ... !!!

दर-ए-यार पे टिकी रहती हैं आँखें
यकीं हैं, इस और फ़िर मुडेंगी तेरी राहें
एक आहट हो तो दिल खुश हो उठता है
कोई भी हो लगता है जैसे के तू आयी है
और लोग कहते हैं तन्हाई है ... !!!

अब भी उन चांदनी कोमल रातों में
दिल को तुम्हारे साथ टहेलता पाते हैं
अब भी उन मदमस्त बरसातों में
किसी रेशमी आँचल को भीगता पाते हैं
जहाँ बिताये थे हमने वो हसीन लम्हे
वहीँ बैठ हमने फ़िर एक नज्म गायी है
और लोग कहते हैं तन्हाई है ... !!!
-अर्श