Saturday, October 19, 2013

Random

ज़िक्र छेड़ा किसी ने महफ़िल में,
तो याद आया, के कभी इस शहर  में
एक शायर भी रहा करता था

Random

आपकी छत पे जब खाने के बाद कॉफ़ी लेके बैठेंगे, 
आपका हाथ थाम कर, 
आपकी आँखों में एक नज़्म चुपके से कह देंगे। 

Saturday, November 24, 2012

वो बात ...

महज़ मुस्कुराने से कहाँ टल सकेगी वो खामोश सी बात,
जो तेरे दिल से निकली और तेरे चेहरे के सुर्ख रोगन में रंग गयी
और
तेरी नज़रों की नमी से मेरे दिल में एक तूफ़ान ले आई है 

Friday, April 27, 2012

शाम को, जो आप आयेंगे छत पे ...

शाम को, जो आप आयेंगे छत पे,
नज़्म खुद-बा-खुद चली आएगी

कभी झील-सी उन आँखों
की गहराईयों में उतर कर
करेगी गुफ्तगू आपकी खामोशियों के साथ
या फिर आपके उड़ते हुए साड़ी के पल्लू में बने फूलों
में महक जाएगी

कभी माजा बनेगी, पेंच लड़ाती  हैं जो ये खूबसूरत आँखें, उनकी
या तो फिर कभी यूँ ही शाम के सुर्ख रोगन में
घुल जाएगी

मैं अक्सर समुन्दर में ढलते सूरज के कान में
चुपके से कह देता हूँ कुछ बातें, दिल की
कभी तो इन लहरों पे चलके उफक के उस पार
आप तक पहुँच जाएँगी

Tuesday, May 17, 2011

कहाँ छोड़ आये हो वो साथी ?

कल चलते चलते एहसास हुआ,
के कुछ जानी पहचानी सी हैं ये राहें.
हवायें कुछ ऐसे छू गयी,
मानो बाहों में भर लिया हो किसी ने,
इक महक मन को बहकाती रही.
चाँद की तरफ देखा तो यूँ लगा,
कोई देख रहा था मुझको,
हम भी नजर मिला चलते रहे.
कुछ कही-अनकही,
कुछ जानी-अनजानी सी,
सदायें भी आती रही.
इक आहट किसी के मंद क़दमों की,
हमसफ़र थी मेरी.
कभी लगा किसी ने हाथ थाम के कहा,
चलो न लम्हा दो लम्हा यहीं बैठ जाएँ.
वो सड़क के किनारे वाले खम्बे
पे टिक कर जो ऊपर की और
उसकी नज़रों में देखा,
तो रौशनी धीमी कर वो बोला,
बड़े दिन बाद नजर आये हो.
रोज सुनता था,
जो छोड़ गए थे,
इन फिजाओं में बातें.
बहुत तेज चलने लग गए हो शायद,
कहाँ छोड़ आये हो वो साथी ?

Wednesday, May 12, 2010

जाने ये कैसी हवा चली है ...

जाने ये कैसी हवा चली है
मेरी नज्में कहाँ बह चली हैं

अक्सर लबों पे आते-आते
लफ्ज़ खो देते थे अपने माने
आज क्या बात है फिर
क्यूँ ये फिजा नयी नयी है

इक अजनबी माहताब ने
दिल पे दी है दस्तक
ये झोंका जो है साथ में लाया
पर वो खुशबू नयी नहीं है

आज भर आया है किस बात पे दिल
कुछ तो बयाँ करो हमसे
बहुत फक्र से कहते थे 'अर्श'
अब तो कोई कमी नहीं है
-'अर्श'

Monday, May 10, 2010

याद आता है ...

याद आता है
तेरा वो नज़रें मिलाके
नजरें चुरा जाना
फिर तेरी नज़रों में
समंदर का उमड़ आना
और उनका धीरे से
सहमे लफ़्ज़ों में कहना
मुझे इस तरह से
न देखो मेरी जान !!!
इस तरह बेबस
न करो मुझको
तेरे इश्क के तूफ़ान में
मेरे दिल कि कश्ती
जाने कहाँ बही जाती है
फिर मेरी पलकें बेबस
इक लम्हा बंद हो जाती हैं
मानो कह रही हो
के बहना ही है अब
तो चल साथ बहें
मैं तेरी नज़रों में
और तू मेरी नज़रों में बहे
और फिर तेरे लबों पे
जो इक कली सी खिलती है
उफ़ ... वो मंज़र
याद आता है ...
- 'अर्श'